हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Friday, April 30, 2010

पूरे भारत में शुरू हुआ शिक्षण शिविरों का दौर

                          पंडित टोडरमल स्मारक के विद्यार्थी वैसे तो साल भर ही तत्व्य प्रचार की गतिविधियों से जुड़े रहते है  दसलक्षण और अष्ठानिका जैसे शाश्वत पर्वो पर तो प्रवचन के लिए जाते ही है बीच बीच में लगने वाले शिविरों में सम्लित होकर धर्म का पचार प्रसार  भी निरंतन करते रहते है ...इनमे शीतकालीन शिविर और विशेष दिनों जैसे दीपावली आदि पर लगने वाले शिविर शामिल है जिनमे अभी दीपावली पर बक्स्वाहा से लगने वाला शिविर इसका उदाहरण है ...ये उन दिनों की बात है जब विद्यार्थी अपनी कॉलेज की पढाई में व्यस्थ रहते है..और समय निकल कर तत्त्व प्रचार करते है ..लेकिन जब शास्त्री विद्वान् कॉलेज की पढाई से निवृत होते है तब घर में छुट्टी मनाने के वजह बे अपना समय धार्मिक तत्व प्रचार में लगते है ....और इस गर्मी के मौसम में भी गाँव गाँव जाकर बालको को धार्मिक संस्कार देते है ...ताकि समाज को एक सभ्य और संस्कारित इंसान के साथ जैन धरम  का नाम   रोशन करने वाला सच्चा जैनी मिल सके ..इन शिवरों का आयोजन और संयोजन भी विद्यार्थियों द्वारा ही किया जाता है ....इन  दो महीनो  पूरे देश में धार्मिक माहौल रहता है ..इन शिविरों में १८ दिनों तक चलने वाला  प्रशिक्षण शिविर भी शामिल है जिसका हिस्सा विद्यार्थी होते है बैसे इस बार का प्रशिक्षण शिविर देवलाली नासिक में ११ मई से आयोजित हो रहा है ....इस शिविर में  डॉ हुकम चन्द भारिल्ल जी का हीरक जयंती का कार्यक्रम शामिल है ... खैर ये ग्रुप शिविर  किसी एक प्रदेश में नही बल्कि पूरे भारत के हर राज्य में लगाये जाते है   ..उन शिविरों की जानकारी देना तो संभव नही है लेकिन हमें जिन शिविरों की जानकारी सुलभता से प्राप्त हुई है उसकी सूची नीचे दी जा रही है.  अगर उक्त संबध में कोई गलती हो या किसी शिविर की जानकारी आपको हो तो कृपया हमें जरुर बताये ......सभी शास्त्री भाइयो को इस तत्त्व प्रचार में योगदान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद के साथ शिविर सफलता की मंगलमय कामना ....पूरी ब्लॉग टीम की तरफ से ....

शिविर का नाम      शिविर आयोजन      शिविर स्थान      शिविर दिनांक      शिविर संयोजक
                                        स्थान
अमरमऊ शिविर              अमरमऊ                       20           22  से 29 मई २०१०        अमरमऊ मुमुक्षु मंडल
 
सिलवानी शिविर               सिलवानी                      35             01  से 10 मई  10         समकित शास्त्री
                                                                                                                         आशीष शास्त्री ,सिलवानी
 
नौगाँव शिविर                  नौगाँव                          20              11 से 19 मई  10          राहुल शास्त्री,
                                                                                                                          मोहित शास्त्री नौगाँव
 
इंदौर शिविर                   इंदौर                           1500          02 से 11 मई १०              रितेश शास्त्री सनावद
                                                                  (बच्चे एक ही                                         इंदौर मुमुक्षु मंडल  
                                                                      स्थान पर ) 
  
विदर्भ शिविर              नागपुर                              51             12  से 20 जून 10          नागपुर मुमुक्षु मंडल
 
भिंड शिविर                 भिंड                              101                 --------                      भिंड मुमुक्षु मंडल
 
द्रोणागिर  शिविर           द्रोणागिर                       25                   ---------                                ----------
 
प्रशिक्षण शिविर           देवलाली नासिक           3000  लोग        11 मई से प्रारंभ                    ---------

Wednesday, April 28, 2010

सुविधाओं की कीमत


पिछले सौ सालों में मानव और समाज की गति की दिशा के बारे में विचार करता हूँ तो पाता हूँ कि यह केवल सुविधा की ओर दौड़ा जा रहा है. पिछले सौ सालों में हुई खोजों और अविष्कारों पर नज़र डालें तो पाएंगे कि वाशिंग मशीन और ड्रायर, डिशवाशर, मोटरगाड़ियां, हवाई जहाज, टीवी, माइक्रोवेव, कम्प्युटर, ई-मेल, इन्टरनेट, फास्ट फ़ूड, लंच पैक्स और ऐसी हजारों चीज़ों ने हमें आधुनिक तो बनाया पर बेहद सुविधाभोगी भी बना दिया.

किसी और बात से भी अधिक हमारा समाज सुविधा पर आश्रित है और उसी पर जीता है. इस सुविधा की क्या कीमत चुकाते हैं हम?

ग्लोबल वार्मिंग. कहते हैं कि हमारे सुविधाभोगी व्यवहार ने ही ग्लोबल वार्मिंग रुपी दैत्य को जन्म दिया है जो देर-सबेर पृथ्वी को निगल ही जाएगा. ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए जो उपाय बताये जा रहे हैं वे सुविधा को और भी सुप्राप्य और सस्ती बना देंगे जैसे विद्युत् चालित मोटर वाहन, स्वच्छ ऊर्जा, स्मार्ट फोन, ऑर्गेनिक फ़ूड… ऐसे में मुझे लग रहा है कि हमें अपने सुविधा के प्रति अपने प्रेम पर पुनः विचार करना चाहिए.

मोटापे की महामारी का जन्म भी सुविधाभोगी बनने का ही नतीजा है. फास्ट फ़ूड, माइक्रोवेव फ़ूड, रेडी-टु-ईट पैक्ड फ़ूड के साथ ही ऐसे भोज्य पदार्थ जिनमें कृत्रिम फ्लेवर और प्रोसेसिंग एजेंट मिलाये जाते हैं वे खाने में इतने एंगेजिंग और हलके होते हैं कि उनकी आवश्यक से अधिक मात्रा पेट में पहुँच जाती है. बहुत बड़ा तबका इन भोज्य पदार्थों को अपने दैनिक भोजन का अंग बना चुका है. लोगों के पास समय कम है और अपना खाना खुद बनाना उनके लिए सुविधाजनक नहीं है. मुझे दिल्ली में रेड लाईट पर रुकी गाड़ियों में जल्दी-जल्दी अपना नाश्ता ठूंसते कामकाजी लोग दिखते हैं. चलती गाड़ी में सुरुचिपूर्ण तरीके से थाली में परोसा गया खाना खाना संभव नहीं है और ऐसे में सैंडविच या पराठे जैसी रोल की हुई चीज़ ही खाई जा सकती है. कभी-कभी तो चलती गाड़ी में बैठी महिला अपने पति को खाना खिलाते हुए दिख जाती है. यह सब बहुत मजाकिया लगता है पर आधुनिक जीवन की विवशतापूर्ण त्रासदी की ओर इंगित करता है. आराम से खाने का वक्त भी नहीं है!

सभी लोग पोषक भोजन करना चाहते हैं पर ऐसा जो झटपट बन जाये या बना-बनाया मिल जाये. पहले फुरसत होती थी और घर-परिवार के लोग बैठे-बैठे बातें करते हुए साग-भाजी काट लेते थे. आजकल सब्जीवाले से ही भाजी खरीदकर उसी से फटाफट कटवाने का चलन है. भाजी के साथ इल्ली और कीड़े-मकोड़े कटते हों तो कटने दो. खैर, जब टीवी पर सीरियल न्यूज़ देखते समय खाने से पेट का आकार बढ़ता है तो ज्यादा कुशल मशीनें बनाई जाती हैं जो कसरत को बेहद आसान बना दें सबसे कम समय में. यदि आप घर से बाहर दौड़ नहीं सकते तो घर के भीतर ट्रेडमिल पर दौडिए. ट्रेडमिल पर दौड़ना नहीं चाहते तो मोर्निंग वाकर भी उपलब्ध है. यह भी नहीं तो स्लिमिंग पिल्स, यहाँ तक कि स्लिमिंग चाय भी मिल जाएगी. सबसे जल्दी दुबला होना चाहते हों तो अपने पेट में मोटी नालियाँ घुसवाकर सारी चर्बी मिनटों में निकलवा लीजिये. घबराइये नहीं, इसमें बिलकुल दर्द नहीं होता और आप उसी दिन उठकर काम पर भी जा सकते हैं!

मैं खुद तो कसरत नहीं करता इसलिए मुझे किसी को पसीना बहानेवाली कसरत करने का लेक्चर नहीं देना चाहिए. लेकिन मैं लगभग रोज़ ही सामान लाने के बहाने लंबा चलता हूँ, लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करता हूँ, अपने कपडे खुद ही धोता हूँ… इसमें बहुत कसरत हो जाती है. असली कसरत तो वही है जिसमें कमरतोड़ मेहनत की जाय और जिसे करने में मज़ा भी आये. ये दोनों ही होना चाहिए. और ऐसी कठोर चर्या के बाद खुद ही अपना खाना बनाकर खाने में जो मजा है वह पिज्जा हट या डोमिनोज को फोन खड़खडाने में नहीं है. एक बात और, सादा और संतुलित भोजन बनाने में अधिक समय नहीं लगता है और उसे चैन से बैठकर खाने का आनंद ही क्या!

मोटर कार भी आवागमन का बहुत सुविधाजनक साधन है हांलाकि किश्तें भरने, सर्विस करवाने, साफ़ करने, पेट्रोल भरवाने, धक्का लगाने, ट्रेफिक में दूसरों से भिड़ने, और पार्किंग की जगह ढूँढने में कभी-कभी घोर असुविधा होती है. इस सुविधा का मोल आप अपनी और पर्यावरण की सेहत से चुका सकते हैं जो शायद सभी के लिए बहुत मामूली है.

यदि आप बारीकी से देखें तो पायेंगे कि सुविधाएँ हमेशा हिडन कॉस्ट या ‘कंडीशंस अप्लाई’ के साथ आती हैं. कभी-कभी ये हिडन कॉस्ट तीसरी दुनिया के देश भुगतते हैं या पर्यावरण को उनका हर्जाना भरना पड़ता है. उनका सबसे तगड़ा झटका तो भविष्य की पीढ़ियों को सहना पड़ता है लेकिन इसके बारे में भला क्यों सोचें? ये सब तो दूसरों की समस्याए हैं!

मैंने कभी यह कहा था की हम सबको अस्वचलित हो जाना चाहिए. इसपर विचार करने की ज़रुरत है. चिलचिलाती धुप में बाल्टीभर कपड़े उठाकर उन्हें छत में तार पर टांगकर सुखाने का आइडिया बहुतों को झंझट भरा लग सकता है पर इसमें रोमानियत और वहनीयता है. घर के किचन गार्डन में ज़रुरत भर का धनिया या टमाटर उगा लेना किसी को टुच्चापन लग सकता है पर मैं इसे बाज़ार में मिलनेवाले सूखे पत्तों और टोमैटो प्यूरी पर तरजीह दूंगा. पैदल चलना, सायकिल चलाना, और मैट्रो में जाना आरामदायक भले न हो पर मोटर गाड़ी में अकड़े बैठे रहने की तुलना में ज्यादा रोमांचक और चिरस्थाई है.

और हमारे दैनिक जीवन की ऐसी कौन सी असुविधाएं है जो वास्तव में हमारे लिए वरदान के समान हैं? मेरे पास केवल प्रश्न हैं, उत्तर नहीं।

(हिंदी जेन से साभार गृहीत )

Friday, April 16, 2010

शाकाहार नहीं है चांदी का वर्क!

चांदी के वर्क में लिपटी मिठाई कैंसर जैसी बीमारी का घर तो है ही, लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ भी है। जी हां, चांदी का यह वर्क पशुओं की आंतों के जरिए जिस तरह बनता है उससे यह शाकाहार तो कतई नहीं रहता। योगगुरु बाबा रामदेव ने इस तरीके से वर्क बनाने पर प्रतिबंध की मांग की है।    
                              चांदी का वर्क बनाने की प्रक्रिया की जानकारी दैनिक भास्कर ने जुटाई। इसमें जो तथ्य सामने आए, वह ऐसी मिठाइयों का सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति को झकझोर सकते हंै। दरअसल इसे पशुओं की ताजा आंत के अंदर रखकर कूट-कूट कर बनाया जाता है। दूसरी तरफ विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि चांदी का वर्क मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
                                                               लखनऊ स्थित इंडियन इंस्ट्टियूट आफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) के एक अध्ययन के मुताबिक बाजार में उपलब्ध चांदी के वर्क में निकल, लेड, क्रोमियम और कैडमियम पाया जाता है। वर्क के जरिए हमारे पेट में पहुंचकर ये कैंसर का कारण बन सकते हैं। 2005 में हुआ यह अध्ययन आज भी प्रासंगिक है क्योंकि वर्क बनाने की प्रक्रिया जस की तस है।
                                      शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश कश्यप के अनुसार धातु चाहे किसी भी रूप में हो, सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होती है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान लीवर, किडनी और गले को होता है। आईटीसी की मेटल एनालिसिस लेबोरेटरी के एन. गाजी अंसारी के अनुसार चांदी हजम नहीं होती। इससे पाचन प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर तो पड़ता ही है, नर्वस सिस्टम भी प्रभावित हो सकता है।
                                                   आजकल बाजार में चांदी के नाम पर एल्यूमिनियम, गिलेट आदि के वर्क धड़ल्ले से बिक रहे हैं जो कही ज्यादा हानिकारक हंै। पुणो स्थित एनजीओ ब्यूटी विदाउट क्रुएलिटी (बीडब्ल्यूसी) के मुताबिक एक किलो चांदी का वर्क 12,500 पशुओं की आंतों के इस्तेमाल से तैयार होता है। एक अनुमान के मुताबिक देश में सालाना लगभग 30 टन चांदी के वर्क की खपत होती है। इसे बनाने का काम मुख्य रूप से कानपुर, जयपुर, अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, रतलाम, पटना, भागलपुर, वाराणसी, गया और मुंबई में होता है।

ऐसे बनता है वर्क:
                                               चांदी के पतले-पतले टुकड़ों को पशुओं की आंत में लपेट कर एक के ऊपर एक (परत दर परत) रखा जाता है कि एक खोल बन जाए। फिर इस खोल को लकड़ी से धीरे-धीरे तब तक पीटा जाता है जब तक चांदी के पतले टुकड़े फैलकर महीन वर्क में न बदल जाएं। पशुओं की ताजा आंत मजबूत और मुलायम होने से जल्दी नहीं फटती है। इसी वजह से इसका उपयोग किया जाता है
बाबा रामदेव ने कहा- धार्मिक अशुद्धि का मामला
                                                                    योगगुरु बाबा रामदेव ने भास्कर से कहा कि चांदी का वर्क   बनाने के ऐसे कारखानों को तुरंत बंद करना चाहिए। यह धार्मिक अशुद्धि का मामला है। उन्होंने कहा  कि आयुर्वेदिक दवा के रूप में चांदी की भस्म का सेवन ठीक रहता है, वह भी निश्चित मात्रा में। दिगंबर जैन आचार्य विशुद्ध सागर जी का भी मानना है कि ऐसे वर्क से बनी मिठाई खाने योग्य नहीं होती। ऐसी मिठाइयों से बचना चाहिए।

ऐसी चीजो को जीवन में शामिल करना है या नही फैसला आपके हाँथ है

ये लेख हिंदी समाचार पत्र दैनिक भास्कर से लिया गया है

Thursday, April 15, 2010

मेरे सपनों का स्मारक-पार्ट 1


(इस लेख का उद्देश्य किसी कार्यविधि की समीक्षा करना नही है नाही ये किसी विचारधारा को प्रभावित करना चाहता है। ये पूरी तरह से व्यक्तिगत सोच है।)

लालू प्रसाद यादव पर एक चुटकुला कुछ इस तरह है-
"जार्ज बुश रावड़ी देवी से- आप लालू को हमारे साथ अमेरिका भेज दीजिये इन्हें हम अंग्रेजी सिखा देंगे।
(कुछ महीनो बाद)
रावड़ी देवी फ़ोन पर-कौन लालू बोल रहे हैं क्या?
प्रतिउत्तर-नही! लालू बहार गए हैं हम बुशवा बोल रहे हैं।"


आप
सोच रहे होंगे मैं अनावश्यक ये चुटकुला क्यों सुना रहा हूँ जबकि इसका इसके टाइटल से भी कोई सम्बन्ध नही है। मैं एक चीज की ओर इसके माध्यम से आपका ध्यान खींचना चाह रहा हूँ कि किसी स्थान या किसी परिवेश में जाकर कोई परिवर्तन नही आते जबकि उस परिवर्तन के लिए खुद मैं जिजीविषा नही हो।

स्मारक के सम्बन्ध में यदि बात की जाये तो कई बार विद्यार्थियों में हमें वैसे परिवर्तन देखने को नही मिलते जैसे की हम अपेक्षा करते हैं। उसका कारण है कि उन्हें सिर्फ सिखाया ही सिखाया जाता है पर ये नही बताया जाता कि सीखते कैसे हैं?


कहने को हम जयपुर में आ गए हैं अपने गाँव को छोड़कर अब हम शहरी हो गए हैं। लेकिन सिर्फ जगह बदलने से ही बदलाव स्वीकार नही किया जायेगा ....जगह बदलने से नजरिया तो नही बदल जाता न...हास्टल के गली-कुचों में ये आवाजें गूंजती रहती है-" काय रे वो मौडा किते गओ या कोई कहता मिल जाएगा खाना खावे नही जाने का" यदि क्षेत्र बदलने से ही परिवर्तन आना होते तो वाक्कौशल भी बदलना चाहिए लेकिन ऐसा नही है। मैं यहाँ किसी भाषा या बोली पर प्रश्नचिन्ह नही उठा रहा हूँ। सिर्फ ये बताना चाहता हूँ कि कोई स्थान या संस्था किसी को अच्छा या बुरा नही बना सकती ये सारी चीजें हमारी अपनी अन्दर कि जिजीविषा पर आधारित हैं-कि हम क्या होना चाहते हैं। IIT में एडमिशन लेने भर से आप इंजीनियर नही बन जायेंगे या मेडिकल कॉलेज आपको डोक्टर नही बना देगा आपको अपनी खुद कि इच्छाशक्ति के आधार से ये कार्य संपन्न करना है। ठीक इसी तरह स्मारक में पड़ने भर से हम संस्कारी नही हो जायेंगे नाही स्मारक हमें किसी खास चोटी पर पंहुचा देगा। ये तो हमें खुद निर्णय करना है कि हम क्या होना चाहते हैं।


सफलता किसी खास क्षेत्र को चुनने से नही मिलती सफलता मिलती है चुने हुए क्षेत्र में ही सर्वश्रेष्ठ हो जाने से। सीखने के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है ईमानदार दृष्टिकोण और सही-गलत को समझ सकने वाली सोच का होना। आत्मविश्वास न होने से ज्यादा खतरनाक है झूठे आत्मविश्वास का होना। क्योंकि झूठे आत्मविश्वास कि एकमात्र परिणति असफलता है। अपने परिवेश का बखूबी ज्ञान होना बहुत ज़रूरी है। ये सारी चीजें सोच सकने वाली दृष्टि यदि हम विकसित कर पाए तब वास्तव में ये कहा जायेगा कि अब हम शास्त्री हुए। यदि ऐसा नही है तो शायद हमारे लिए यही कहा जायेगा कि पहले हम देहाती-देहाती थे अब हम माडर्न-देहाती हो गए।

महज
कपडे कैसे पहनना चाहिए या चेहरे और बालों को कैसे चमकाया जाता है यही सीखना तो समझदार हो जाना नही है, जबकि अन्तरंग में ही समझ विकसित न हुई हो। जिम में जाकर चर्बी घटाने से ही काम नही चलने वाला जब तक विचारों पर, मष्तिष्क पर चड़ी चर्बी नही हटेगी। दूसरों के सामने खुद की शेखी बघारने से, दूसरों की नज़रों में ऊपर चढ़ने से आप महान नहीं होंगे , जब तक आप खुद की नजरों में ऊँचा नही उठेंगे तब तक आप महान नही हो सकते। व्यापक दृष्टिकोण और गहराई से विचारने वाली सोच कों विकसित करना सबसे बड़ा कार्य है।

इन सारी बातो को अपने जीवन में लाकर ही सफल हुआ जा सकता है। इस भांति हर शास्त्री का हो सकना शायद सबसे बड़ी कामयाबी होगी। इस तरह से यदि हम तैयार हो सके तो जीवन में कभी हमें कोई कुंठा नही घेरेगी, हम इस बात को लेकर कभी तनावग्रस्त न होंगे कि हमने क्यों मैथ्स या कामर्स लेकर पढाई नही की, हम अक्सर अप्राप्त चीजों को पाने की फिक्र में प्राप्त चीजों का मज़ा नही ले पाते। हमें ये पता ही नही होता की स्मारक से हमें क्या मिला है, हमारी नसों में तैरने वाला आत्मबल आखिर कहाँ से आया है या क्या कारण है कि चरम तनाव के समय में भी अत्यधिक दुर्विचार हमारे ज़हन में नही आते। इन सारे प्रश्नों के जबाव यदि खोजे जाये तो निगाहों के सामने स्मारक तैरता नज़र आएगा।

हमारा जीवन हमेशा जीवन को बेहतर, और बेहतर बनाने के लिए है। जिसका मतलब हम जहाँ भी खड़े हैं हमें अब उससे आगे ही बढ़ना है, और काबिल होना है। ठहराव ही मृत्यु है। रुकने का तो कोई विकल्प ही नही है, निष्क्रियता का समृद्ध जीवन में कोई स्थान ही नही है। तो क्या किया जाना चाहिए खुद को बेहतर करने के लिए ? इसका उत्तर आप खुद से पूछे मै यदि इसका उत्तर दूंगा तो ये मेरा अपना नजरिया होगा, जिसे मैं थोपना नही चाहूँगा। लेकिन यदि मैं ये प्रश्न खुद से करूँ तो शायद इसका उत्तर होगा स्वाध्याय, अपने परिवेश की बेहतर समझ, उस परिवेश में बेहतर ढंग से जी सकने वाली योग्यताओं का विकास, और सच-संस्कार एवं धर्म पर दृढ विश्वास को कायम कर सकने वाली आस्था को पैदा करना।

दोपहर में चार-चार घंटे सोकर या रातों को असीमित गप्प करके शायद ये काम नही हो सकता। जब हम समय बरबाद कर रहे होते हैं तब हम थम जाते हैं पर समय तब भी चल रहा होता है। महान समय के साथ चलकर हुआ जा सकता है। महानता का आशय ये कतई नही है की हमारा खूब नाम हो जायेगा या हमारी जय-जयकार होने लगेगी। शोहरत कभी भी महानता का पैमाना नही होती। अनुशासन और सदाचरण वास्तविक महानता है जो कतई तालियों की अपेक्षा नही रखते।
बहरहाल मेरे सपनो में तैरता स्मारक और मेरे शास्त्री भाइयों की तस्वीर बहुत व्यापक है जिसे क्रम से आगे बढ़ाएंगे अभी के लिए इतना काफी....जीवन उद्देश्य पूर्ण बनायें क्योंकि "महान मस्तिष्कों में उद्देश्य होते हैं अन्य लोगों के पास सिर्फ इच्छाएं होती हैं"।
क्रमशः.........................................

Thursday, April 8, 2010

छोटी-छोटी मगर मोटी बातें ३

१.कितना अभागा और अधुरा है वो इन्सान जिसने दर्द कों स्पर्श नही किया, कितनी शून्य है वे आँखें जो आंसुओं से नम नही हुई।
.किसी वस्तु की कीमत उसकी चमक से नही, उसके प्रति चाहत से तय होती है
.जिसे हम प्रेम करते हैं उसके प्रति अनिष्ट की शंका बनी रहती है
.जहाँ भी मूल्य के स्तर और समीक्षा के मापदंड का प्रयोग हो, समझिये वही दर्शन है
.सफलता और हमारे बीच की वास्तविक दूरी हमारी दृष्टि ही होती है

1.Beauty is power, a smile is it's swored.
2.Happiness is the interval between the periods of unhappiness.
3.Luck is what happens when preparations meats opportunity.
4.Good is not good when better is expected.
5.The will to prepare is more important than the will to win.

Wednesday, April 7, 2010

मनुष्यता

है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार;
पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार|
भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम;
बह रही असहाय नर कि भावना निष्काम|
लक्ष्य क्या? उद्देश्य क्या? क्या अर्थ?
यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञानं का श्रम व्यर्थ|
यह मनुज, जो ज्ञान का आगार;
यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार |
छद्म इसकी कल्पना, पाखण्ड इसका ज्ञान;
यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान

रामधारीसिंह "दिनकर"

Friday, April 2, 2010

परीक्षा का माहौल

आजकल स्मारक में परीक्षा का माहौल चल रहा हैं. विद्यार्थी अब अपनी आगामी परीक्षाओं के लिए तय्यारिओं में जुट गए हैं. वरिष्ठ, 2nd इयर और final वाले लगभग अगले १० दिनों में फ्री हो जायेंगे.
जबकि 1st इयर और कनिष्ठ की परीक्षाये १५ अप्रैल से चालू होंगी.

सभी को परीक्षाओं के लिए बेस्ट ऑफ़ लक. चिंता मत करना, आप सफल होंगे!

मांसाहार से जंग

जयपुर की सर्वाधिक प्रकाशित मैंग्जइन "हैलो जयपुर" में प्रकाशित interview

Thursday, April 1, 2010

स्मारक में गूंजी भगवान महावीर की गूंज

पंडित टोडरमल स्मारक भवन में रविवार को भगवान महावीर की जन्म जयंती बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाई गई, इस अवसर पर स्मारक के विद्यार्थियों ने प्राणी मात्र के प्रति दया और सदभावना की प्रेरणा के प्रतीक स्वरूप एक झांकी निकाली, जिसे स्मारक से प्रारंभ होकर पूरे शहर का भ्रमण करने वाले भव्य जलूस में शामिल किया गया।
वीर प्रभु के जयकारो से न केवल स्मारक भवन बल्कि पूरा जयपुर गूंज उठा,इस पावन प्रसंग पर स्मारक में दिन भर सत्य और अहिंसा के गीत गाये जाते रहे और रात्रि कालीन प्रवचन में भगवान् महावीर की शिक्षाओ पर विवेचन किया गया
इस पवित्र दिन पर स्मारक के छात्रो ने वर्धमान के संदेशो को जन जन तक पहुँचाया,साथ ही एक अनूठी पहल की जिसके तहत सभी शास्त्री विद्वानों ने अपने पुराने कपडे एकत्रित किये और उन्हें जरुरतमंदों और गरीब लोगो में वितरित किया.जँहा स्मारक के विधार्थियों ने जमकर समाजसेवा की वही दैनिक भास्कर समूह द्वारा "भगवान महावीर के सिद्धांतो की वर्तमान उपयोगिता" इस विषय पर आयोजित प्रतियोगता में बढ़ चढ़कर भाग लिया। जिसमे शास्त्री अंतिम वर्ष के छात्र अभिषेक जैन मढ़देवरा और अभिषेक जोगी ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए पहला स्थान प्राप्त किया.स्मारक के सभी विधार्थियों को इस उत्कृष्ठ कार्य के लिए पूरी ब्लाग टीम की ओर से हार्दिक बधाई !!!
"संतप्त मानस शांत हो ,जिनके गुणों के गान में
वे वर्धमान महान जिन विचरे हमारे ध्यान में" .